लोकानुशासन : प्रौढ़ शिक्षा का कर्म, धर्म और मर्म

लोकानुशासन : प्रौढ़ शिक्षा का कर्म, धर्म और मर्म
हम लोग अब तक प्रौढ़ शिक्षा को इस निगाह से देखते रहे हैं कि जो लोग बचपन में स्‍कूलों में पढ़ाई के दौर से गुजरे बिना ही प्रौढ़ हो गये हैं वे लोग ”शिक्षा से वंचित” रह गये हैं और उन बेचारों पर दया करके हमें चाहिए कि हम उनके लिए रात्रि-शालाएँ चलाएँ और ”देर ...

बुनियादी शिक्षा का सर्वोदय दर्शन

बुनियादी शिक्षा का सर्वोदय दर्शन
–    दयाल चंद्र सोनी   शिक्षा का काम केवल तरकीब या पद्धति तक सीमित नहीं है। सच्ची शिक्षा के पीछे कुछ मान्यता, श्रद्धा, विश्वास, उद्देश्य, आदर्श अथवा दर्शन भी अवश्य रहता है। शिक्षा केवल इसी में ही सीमित नहीं है कि ज्ञान-विज्ञान का प्राचीन संचय नई पीढ़ी को हस्तांतरित कर दिया जाए। शिक्षा विकास की ...

वास्तविक जनतंत्र – शिक्षक चुनने की स्वतंत्रता

वास्तविक जनतंत्र - शिक्षक चुनने की स्वतंत्रता
जनतंत्र यो न्हीं हे के जनता शासकाँ ने चुन सके। वास्तविक जनतंत्र यो हे के जनता शिक्षकाँ ने चुन सके। (मेवाड़ी) – दयाल चंद्र सोनी, शिक्षांजलि 1992  "Jantantra yo nee hai ke janta shashakaan nai chun sakay. Vastavik Jantantra to woh hai ke janta shikshikan nai chun sakay." जनतंत्र यह नहीं है कि जनता शासकों ...

शिक्षकों की तेजस्विता का त्यक्तिमार्ग

शिक्षकों की तेजस्विता का त्यक्तिमार्ग
नया शिक्षक/टीचर टुडे जुलाई-सितम्‍बर 1977 में प्रकाशित श्री दयाल चंद्र सोनी का लेख   स्‍वैच्छिक शिक्षण संस्‍थाओं के प्रबन्‍ध में उन संस्‍थाओं के कार्यकर्ताओं का समुचित प्रतिनिधित्‍व होना चाहिए ऐसी मांग प्राय: उठा करती है और यह मांग निर्विवाद रूप से उचित है। परन्‍तु इस मांग के मान लिये जाने से शिक्षकों की परिस्थिति में ...

बुनियादी शिक्षण में केन्द्रस्थ और क्षेत्रस्थ समवाय की पारस्परिक प्रणाली

बुनियादी शिक्षण में केन्द्रस्थ और क्षेत्रस्थ समवाय की पारस्परिक प्रणाली
बुनियादी तालीम, अप्रेल 1961 में प्रकाशित श्री दयाल चंद्र सोनी का लेख   शिक्षक की समस्या सर्व विदित है कि बुनियादी शिक्षा का मौलिक तत्व समवाय है और विद्यार्थी के हस्तोद्योग तथा सामाजिक और भौतिक जीवन के द्वारा जो शिक्षा दी जाती है उसे समवाय शिक्षा कहा गया है। परन्तु एक शिक्षक को जब कुछ ...

शिक्षक को पालतू बनाने के लिये प्रशिक्षण आवश्यक है

शिक्षक को पालतू बनाने के लिये प्रशिक्षण आवश्यक है
जब राज्‍यों में मुख्‍यमंत्री, मंत्री या जिम्‍मेदारी के अन्‍य बड़े बड़े संवैधानिक पदों पर अप्रशिक्षित एवं अनभ्‍यस्‍त लोगों को लगाया जा सकता है तो मैं सोचता हूँ कि एक शिक्षित व्‍यक्ति को शिक्षक पद पर नियुक्ति हमारी सरकार तब तक क्‍यों नहीं देती जब तक वह प्रशिक्षित होने का प्रमाण पत्र पेश नहीं करता? कॉलेजों ...